Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 मीरा बाई

Rajasthan Board Books

Created with Sketch.

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 मीरा बाई

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 मीरा बाई

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘लियो री बजंता ढोल’ पंक्ति में ‘बजंता ढोल’ से मीरा का आशय है
(क) प्रसन्न होकर
(ख) निशंक होकर
(ग) सबको दिखाकर
(घ) छिपकर
उत्तर:
(ख) निशंक होकर

प्रश्न 2.
मीरा के पदों में किस भाव की प्रधानता है ?
(क) वीर
(ख) वात्सल्य
(ग) ओज
(घ) माधुर्य
उत्तर:
(घ) माधुर्य

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा संसार को किस खेल के समान मानती है?
उत्तर:
मीरा संसार को चौसर के खेल के समान मानती है जो शाम होने पर बंद हो जाता है।

प्रश्न 2.
सद्गुरु ने मीरा को कौन-सी अमूल्य वस्तु प्रदान की?
उत्तर:
सद्गुरु ने मीरा को राम नाम रूपी अमूल्य वस्तु प्रदान की।

प्रश्न 3.
‘लियौ री आँखी खोल’ कथन से मीरा का क्या आशय है ?
उत्तर:
मीरा के कथन का आशय है कि उन्होंने श्रीकृष्ण का वरण किसी के कहने से नहीं अपितु अपनी अन्तरात्मा की प्रेरणा से किया है।

प्रश्न 4.
मीरा को किस रत्न की प्राप्ति हुई ?
उत्तर:
मीरा को राम नाम रूपी अमूल्य रत्न की प्राप्ति हुई।

प्रश्न 5.
मीरा की भक्ति किस कोटि की है ?
उत्तर:
मीरा की भक्ति अत्यन्त उच्च कोटि की है, जो पूर्ण समर्पण और संसार से विराग के उपरान्त ही प्राप्त होती है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा की संसार के प्रति क्या धारणा है और वह अपने मन को क्या प्रेरणा देती हैं ?
उत्तर:
मीरा इस संसार को नाशवन मानती है। उनका कहना है कि धरती और आकाश के बीच जो कुछ भी दृश्यमान जगत है वह एक दिन नष्ट हो जाना है। अत: वह अपने मन को प्रेरणा देती है कि वह प्रभु के अविनाशी चरणों का भजन करे। उन्हीं की शरण में जाने से आवागमन के चक्र से मुक्ति मिलेगी।

प्रश्न 2.
मीरा ने राम रतन धन में क्या विशेषता पाई?
उत्तर:
मीरा सतगुरु से राम नाम रूपी रत्न पाकर स्वयं को धन्य मान रही है। उनके अनुसार यह नाम-रत्न अमूल्य धन है। यह उन्हें गुरु कृपा से ही प्राप्त हुआ है। इस धन में अनेक विशेषताएँ हैं। वह सांसारिक धन के समान खर्च नहीं होता। इसे कोई चोर चुरा नहीं सकता और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है। जितना इस नाम का जप किया जाता है उतनी ही इसके प्रभाव में वृद्धि होती जाती है। .

प्रश्न 3.
‘मीरा कें प्रभु दरसण दीज्यो, पूरब जनम को कोल’ यहाँ ‘पूरब जन्म को कोल’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
इस पंक्ति में मीरा ने अपने प्रभु को स्मरण कराया है कि उन्होंने पूर्व (पिछले) जन्म में उन्हें दर्शन देने और अपनाने का वचन दिया था। अत: वह उनको शीघ्र दर्शन देकर विरह-वेदना से मुक्त कर दें। इस कथन के पीछे यह मान्यता चली आ रही है कि मीरा पिछले जन्म में ललिता सखी थीं जो कृष्ण को बहुत प्रेम करती थीं। कृष्ण ने उन्हें अगले जन्म में दर्शन देने का वचन दिया था।

प्रश्न. 4.
“सत की नाव खेवटिया सद्गुरु भव सागर तर आयो।” पंक्ति का आशय क्या है ?
उत्तर:
गुरु को साक्षात् पारब्रह्म का स्वरूप माना गया है। बिना गुरु की शरण में जाए संसार रूपी भवसागर के पार जा पाना सम्भव नहीं है। मीरा को गुरु कृपा से ही ‘राम रतन धन प्राप्त हुआ है। अत: वह इस पंक्ति द्वारा उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रही हैं। उनका कहना है कि उन्होंने प्रभु के संत नाम को नौका बनाया और गुरु को खेवनहार बनाया। इस प्रकार उन्होंने संसार के जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो गई हैं।

प्रश्न 5.
मीरा के अनुसार हमारी देह किस प्रकार की है ?
उत्तर:
भारतीय दर्शन के अनुसार हमारी देह पंच महातत्वों से निर्मित है। क्षिति (पृथ्वी) जल, पावक (अग्नि) गगन (आकाश) समीर (वायु) साधु-संत इसे मिट्टी का बना, कच्चा घड़ा आदि कहते आए हैं। शरीर के प्रति तुच्छता का भाव हमारी संस्कृति की एक विचित्र मान्यता है। मीरा की भी मानव देह के प्रति यही भावना है। वह कहती हैं कि इस मनुष्य शरीर पर गर्व करना मूर्खता है क्योंकि एक दिन इसे मिट्टी में मिल जाना है। एक दृष्टि से मीरा का यह कथन यह संदेश भी देता है कि विनम्रता ही मनुष्य का भूषण है। अहंकार-चाहे वह तन का हो या धन का-सदा दुखदायी हुआ करता है। अत: इससे बचना चाहिए।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
मीरा की भक्ति भावना अपने आप में अद्वितीय है। उसके पीछे एक सम्पूर्ण समर्पण युक्त नारी-हृदय है। मीरा एक पद में कहती हैं-‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई’। संकलित पदों में भी मीरा के एकमात्र प्रभु ‘गिरधर नागर’ ही हैं। वह उनसे ‘जम की फाँसी’ काटने की प्रार्थना कर रही हैं। प्रिय दर्शन की प्यासी उनकी आँखें प्रतीक्षा करते-करते दुखने लगी हैं। ऐसी मिलन की आकुलता मीरा की भक्ति-भावना की अद्वितीय विशेषता है। अपनी भक्ति के बल पर मीरा ने अपने गोविन्द को मोल ले लिया है।

उन्हें घर, परिवार और संसार किसी की आलोचना और व्यंग्य बाणों की चिन्ता नहीं। वह तो ‘ढोल बजाकर’ निशंके भाव से अपने प्रियतम का वरण करती हैं। उन्होंने आँखें खोल कर, तराजू पर तोल कर और अनमोल धन चुकाकर अपने प्रिय गोविन्द को पाया है। मीरा की भक्ति भावना की यदि कुछ तुलना की जा सकती है तो वह गोपियाँ की भक्ति से ही की जा सकती है। इस भक्ति में सहज समर्पण है, अपने प्रभु में अडिग निष्ठा है और अपने माधुर्यमय सम्बन्ध की सार्वजनिक स्वीकृति है। मीरा की भक्ति-भावना सचमुच अनुपम है।

प्रश्न. 2.
मीरा के पदों की काव्यगत विशेषता बताइए।
उत्तर:
हमारी पाठ्य-पुस्तक में मीराबाई के चार पद संकलित हैं। इन पदों में मीरा के पदों की प्राय: सभी काव्यगत विशेषताएँ उपस्थित हैं।
भाव-पक्ष – मीरा मूलत: एक कवयित्री नहीं हैं वह तो एक समर्पित भक्त हैं। अपनी भक्ति-भावना के प्रकाशन में उनके वियोगी हृदय से जो वाग्धारा प्रवाहित हुई है वही मीरा की कविता है। मीरा का काव्य भाव प्रधान है। माधुर्य भाव की भक्ति का आदर्श रूप मीरा के पदों में देखा जा सकता है। वह अपनी प्रत्येक भावना, व्यथा और समस्या अपने प्रभु गिरधर नागर को ही सुनाती है। जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए, वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण के श्रीचरणों का ध्यान करने की प्रेरणा अपने मन को दे रही है। भज मन चरण-कँवल अविनासी’ मीरा के काव्य की एक विशेषता उनकी विरह-वेदना का मर्मस्पर्शी प्रकाशन भी है। वह एक मिलन के लिए व्याकुल नारी-हृदय की पुकार है –

“दरस बिनु दूखण लागे नैन।
जब के तुम विछुरे प्रभु मोरे, कबहुँ न पायो चैन।”

इस विरह गीत में कोई बनावट, कोई प्रस्तावना या कोई कवित्व प्रदर्शन की कामना नहीं है। सीधा-सपाट एक व्याकुल मन को विरह गान है।
गुरु के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव मीरा के काव्य में उपस्थित है। गुरु-कृपा से उन्हें ‘राम रतन धन’ मिला है। मीरा के भाव पक्ष की एक विलक्षण विशेषता उनका दृढ़ आत्मविश्वास और परमप्रिय श्रीकृष्ण से प्रेम सम्बन्ध की सार्वजनिक स्वीकृति है। एक भक्त अपने भगवान को मोल ले ले और भगवान उसके हाथों बिक जाएँ। यह एक मीरा के भाव-पक्ष की एक अनूठी विशेषता है।

कला-पक्ष – मीरा का कवयित्री होना एक संयोग मात्र है। यह मीरा का लक्ष्य नहीं है। मीरा की भाषा राजस्थानी और ब्रजभाषा का मिश्रित स्वरूप है। मीरा की भाषा की भक्ति उसकी अकृत्रिमता, बनावट का अभाव है। मीरा ने मुहावरों और लोकोक्तियों को भी यथास्थान प्रयोग किया है। मीरा की समस्त रचनाएँ मुक्तक गीति शैली में हैं। उनकी गेयता और भाव-प्रवाह उन्हें आज तक लोकप्रिय बनाए हुए है। अलंकार स्वाभाविक रूप से उपस्थित हुए है। ‘माटी में मिल’, ‘कथा का कहूँ’, ‘राम रतन धन’ तथा ‘अमोलक मोल’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।’जनम-जनम’, दिन-दिन, ‘हरखि-हरखि’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा ‘यो संसार चहर की बाजी’ में उपमा तथा ‘राम रतन धन’, ‘सत की नाव खेवटिया सत्गुरु’ में रूपक अलंकार उपस्थित है। इस प्रकार मीरा काव्य भाव प्रधान काव्य है। भावपक्ष ही उनके काव्य का मूलधन है।

प्रश्न. 3.
माई री! मैं तो लियो गोविन्दो मोल।’ पद का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पद के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि इस पद के रूप में मीरा ने अपने आचरण पर उँगली उठाने वालों को काव्यमय और सटीक उत्तर दिया है। विनम्रता का त्याग किए बिना और आलोचकों को संबोधित किए बिना, वह कहती हैं –
‘माई री’ मैं तो लियो गोविन्दो मोल।’

जब गोविन्द मीरा के हाथों बिक गये तो वह उनके मन की निजी सम्पत्ति हो गए। अब किसी को भी उनके और गोविन्द के प्रेम पर उँगली उठाने का क्या अधिकार है। मीरा सबको सुनाकर भी घोषित करती हैं कि उन्होंने यह प्रेम-व्यापार ढोल बजाकर सम्पन्न किया है। उन्होंने किसी के कहने से नहीं अपितु स्वयं विवेक और भावना की तुला परे तोल कर यह अनुपम वस्तु (गोविन्द) खरीदी है। यह सौदा उन्होंने आँखें खोलकर किया है।

वह समाज को संबोधित करते हुए कह रही हैं ‘याही हूँ सब जग जाणत है, लियो री अमोलक मोल’ जिसे गोविन्द को पाना है, वह उनकी तरह ‘अमोलक मोल’ चुकाए। मीरा का आत्मविश्वास और अपने इष्टदेव में अडिग निष्ठा इस पद की पंक्ति-पंक्ति से झलक रहा है। पद के द्वारा मीरा ने, भक्ति के कठिन मार्ग पर बढ़ने वाले प्रभु-प्रेमियों का मार्ग-दर्शन किया है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) भज मन चरण ………………………. फाँसी ॥
(ख) मैंने राम रतन ………………………. जस गायो॥
उत्तर:
संकेत – छात्र ‘सप्रसंग व्याख्याएँ’ प्रकरण का अवलोकन करके स्वयं व्याख्या लिखें।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा ने चरण कँवल’ की विशेषता बताई है
(क) वे कोमल हैं
(ख) वे अति सुंदर हैं।
(ग) वे अविनाशी है।
(घ) वे शरणागत के रक्षक हैं।
उत्तर:
(ग) वे अविनाशी है।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के दर्शन के बिना मीरा की कैसी दशा हो गई है ?
(क) उनका हृदय व्याकुल है।
(ख) लोगों के व्यंग्य से वह आहत हैं।
(ग) उनकी आँखें प्रतीक्षा करते-करते दुखने लगी हैं।
(घ) उन्हें रातें बहुत लम्बी लगने लगी हैं।
उत्तर:
(ग) उनकी आँखें प्रतीक्षा करते-करते दुखने लगी हैं।

प्रश्न 3.
गुरु से मीरा को मिला है –
(क) आशीर्वाद
(ख) मार्गदर्शन
(ग) आश्वासन
(घ) राम रतन
उत्तर:
(घ) राम रतन

प्रश्न 4.
मीरा ने मोल लिया है –
(क) भवन को
(ख) गोविन्द को
(ग) प्रभु के मंदिर को
(घ) श्रीकृष्ण की प्रतिमा को
उत्तर:
(ख) गोविन्द को

प्रश्न 5.
मीरा अपने प्रभु के दर्शन चाहती हैं –
(क) अपनी भक्ति के बल पर
(ख) अपने सर्वस्व समर्पण के आधार पर
(ग) पूर्व जन्म में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वचन के आधार पर
(घ) गुरु की कृपा के आधार पर
उत्तर:
(ग) पूर्व जन्म में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वचन के आधार पर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा मनुष्य-शरीर के बारे में क्या कहती हैं ?
उत्तर:
मीरा का कहना है कि मनुष्य को अपने शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह नाशवान है।

प्रश्न. 2.
कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घर तज भये सन्यासी।’ मीरा ने यह व्यंग्य किन लोगों पर किया है ?
उत्तर:
मीरा ने यह व्यंग्य उन लोगों पर किया है जो घर त्याग कर संन्यासी हो जाते हैं और भगवा वस्त्र भी धारण कर लेते हैं, लेकिन संसार से मोह नहीं छोड़ पाते हैं।

प्रश्न 3.
मीरा हाथ जोड़कर गिरधर नागर से क्या अर्ज करती हैं ?
उत्तर:
वह गिरधर नागर से प्रार्थना करती हैं कि वह उनको जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करके अपने चरणों में स्थान प्रदान करे।

प्रश्न. 4.
बिरह कथा कासँ कहूँ सजनी’ मीरा ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर:
मीरा की विरह व्यथा को समझ सकने वाला श्रीकृष्ण के अतिरिक्त और कोई नहीं है। इसी कारण मीरा ने उपर्युक्त शब्द कहे हैं।

प्रश्न. 5.
मीरा का प्रभु से मिलन होने पर क्या होगा ?
उत्तर:
इससे मीरा के सारे दुख दूर हो जाएँगे और उनका जीवन सुखों से भर जाएगा।

प्रश्न 6.
मीरा को सद्गुरु की कृपा किस रूप में प्राप्त हुई है ?
उत्तर:
सद्गुरु ने मीरा को अपना बनाया है और उन्हें राम नाम रूपी अमूल्य धन प्रदान किया है।

प्रश्न 7.
मीरा ने जनम-जनम की पूँजी किसे माना है ?
उत्तर:
मीरा ने मनुष्य जन्म पाने को जन्म-जन्मों के पुण्यों से प्राप्त पूँजी माना है क्योंकि इसी के द्वारा वह अपने प्रभु की भक्ति कर पा रही है।

प्रश्न 8.
मीरा हर्षित होकर किसके यश का गान कर रही हैं ?
उत्तर:
मीरा अपने प्रभु गिरधर नागर के तथा उनकी कृपा से प्राप्त गुरु के यश का गान कर रही हैं।

प्रश्न 9.
‘लियो री बजंता ढोल’ से मीरा का क्या आशय है ?
उत्तर:
मीरा का कहना है कि उन्होंने लोगों के व्यंग्य और आलोचनाओं की चिन्ता किए बिना, निशंक होकर गोविन्द से नाता जोड़ा

प्रश्न 10.
“याही हूँ सब जग जाणत है” मीरा के अनुसार जग क्या जानता है ?
उत्तर:
मीरा के कहने का आशय यह है कि उन्होंने कितने कष्ट, अपमान और विरह-वेदना सहकर गोविन्द से अपने नाते को पाला-पोसा है, इस बात को सब लोग जानते हैं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा के काव्य का मुख्य भाव कौन सा है ? संकलित पदों के आधार पर इस भाव की उपस्थिति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मीरा की कविता का प्रमुख भाव माधुर्य है। उन्होंने गिरधर गोपालं को अपना पति मानते हुए, अपनी अनुभूतियों और भावनाओं का प्रकाशन किया है। वियोग और संयोग दोनों स्थितियों में मीरा की माधुर्यमयी अभिव्यक्ति बड़ी मार्मिक है।

“दरस बिनु दुखण लागे नैन।
जब के तुम बिछुरे प्रभु मोरे, कबहुँ न पायौ चैन।”

मीरा का यह उपालम्भ (उलाहना) भी प्रेम के माधुर्य में भीगा हुआ है। उन्होंने शिकायत नहीं की है, उलाहना दिया है। वह पूछती हैं ‘कबरे मिलौगे’? मीरा की विरह-वेदना भी माधुर्य से सिक्त है। गोविन्द का मोल लेना भी माधुर्य और प्रसन्नतासूचक अभिव्यक्ति है। गोविन्द से अपने मधुर सम्बन्ध की हास-परिहासमयी सूचना

प्रश्न 2.
‘भज मन चरण-कँवल अविनासी’, इस पद में मीरा ने अपने मन को क्या-क्या चेतावनी दी हैं ? लिखिए।
उत्तर:
मीरा संकेत करती हैं-हे मेरे मन! तू प्रभू श्रीकृष्ण के अविनाशी चरणों का भजन कर-क्योंकि इनके अतिरिक्त इस सृष्टि में सब नष्ट होने वाला है। वह सावधान करती हैं-इस मनुष्य शरीर को पाकर अहंकार मत करने लगना। इसे तो कुछ समय बाद मिट्टी में मिल जाना है। यह सांसारिक जीवन तो चौसर के खेल के समान है। शाम होते ही खिलाड़ी खेल बन्द करके चल देते हैं। भाव यह है। कि श्रीकृष्ण के चरण ही सदा-सदा रहने वाले हैं। संसार की बाकी सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। अतः इनके मोहजाल में फंसना मूर्खता है। ”

प्रश्न 3.
मीरा ने संन्यासियों और योगियों पर क्या व्यंग्य किया है ? संकलित पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
मीरा उन संन्यासियों और योगियों पर व्यंग्य कर रही है जो केवल बाहरी उपायों से संन्यास और योग का फल पाना चाहते हैं। मीरा कहती है कि भगवा रंग के कपड़े धारण कर लेने से या घर त्याग कर देने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। जब तक मन सांसारिक विषयों के मोह से मुक्त नहीं होता तब तक संन्यास का कोई अर्थ नहीं। इसी प्रकार योगी तो बन गए लेकिन योग साधना के बाद भी ‘योग’ अर्थात् परमात्मा से एकाकार होने की युक्ति नहीं आई तो ऐसे योगभ्रष्टे को फिर से संसार में जन्म लेना पड़ता है।

प्रश्न 4.
अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से बिछुड़ने पर मीरा की कैसी दशा हो गई है ? संकलित पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
प्रभु श्रीकृष्ण से बिछुड़ने के बाद से मीरा की मानसिक दशा, हृदय में सहानुभूति जगाने वाली है। मीरा की आँखें, प्रिय के आगमन की राह देखते-देखते दुखने लगी हैं। जब वह अपने प्रिय से बिछुड़ी हैं, उन्हें एक पल को भी चैन नहीं मिला। हर आहट पर उनका हृदय धड़कने लगता है। हरि के आगमन की बाट देखते हुए उन्हें क्षणभर को भी चैन नहीं आता। उनके लिए एक रात छह मास जितनी लम्बी लग रही है। रात बिताए नहीं बीतती है। मीरा अपने प्रभु से पूछती हैं कि वे उन्हें कब दर्शन देकर विरह-व्यथा से मुक्ति प्रदान करेंगे ?

प्रश्न 5.
‘जनम-जनम की पूँजी पाई’ पंक्ति में मीरा ने जन्म-जन्मों की पूँजी किसे कहा है ?
उत्तर:
मीरा ने इस पंक्ति में जन्म-जन्मों की पूँजी मनुष्य देह को तथा गुरु से प्राप्त ‘राम रतन धन’ को कहा है। जीव जगत में मनुष्य शरीर ही ऐसा है जिसके माध्यम से कर्म, धन, विद्या आदि का साधन सम्भव है। इसलिए मीरा मनुष्य जन्म पाने को, अपने पिछले अनेक जन्मों का सुफल मानती है। इसके साथ ही गुरुकृपा से प्राप्त भगवान नाम का मंत्र भी कम मूल्यवान नहीं। उसी के जप से भगवत प्राप्ति हो सकती है। मानव जन्म सफल हो सकता है। यह ऐसी पूँजी है जो कभी घुटती नहीं।

प्रश्न 6.
‘लियौ री अमोलक मोल’ मीरा ने अपने गोविन्द को किस अमूल्य वस्तु से मूल्य चुकाकर खरीदा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीकृष्ण जैसी वस्तु को मोल लेना किसी साधारण व्यक्ति और साधरण मूल्य द्वारा सम्भव नहीं हो सकता है। इसे खरीदने वाला तथा इसका मूल्य दोनों ही असाधारण हैं। मीरा ने गोविन्द को पाने के लिए क्या-क्या त्याग नहीं किया। उपेक्षा, तिरस्कार, प्राणों पर संकट और घरबार का त्याग, ये सभी कष्ट मीरा ने गिरधर नागर से अपने प्रेम के लिए सहन किए। यह प्रेम ही वह पूँजी है जिससे मीरा ने गोविन्द को मोल ले लिया है।

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण को मोल लेने के लिए मीरा ने वे सारे मानदण्ड अपनाए हैं जो एक उत्तम वस्तु खरीदते समय लोग अपनाते हैं। संकलित पद के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
साधारण वस्तु क्रय करते समय भी व्यक्ति उसकी भली भाँति जाँच-परख करता है और उपयुक्त मूल्य ही चुकाता है। मीरा ने भी ऐसा ही किया है। उन्होंने सारे समाज को साक्षी बनाकर-ढोल बजाकर अपने गोविन्द को मोल लिया है। तराजू-बुद्धि-विवेक और भावना से तोल कर ही गोविन्द को स्वीकर किया है। बुद्धिमान व्यक्ति, कोई भी बहुमूल्य वस्तु दूसरों के कहने मात्र से नहीं, अपितु स्वयं आँखें खोलकर, मूल्यांकन करके ही लिया करता है। मीरा ने भी ऐसा ही किया है। साथ ही क्रय की जाने वाली वस्तु के स्तर के अनुकूल ही मूल्य भी चुकाया है। अतः भक्तों की शिरोमणि मीरा ने, हर दृष्टि से एक उत्तम सौदा किया है।

प्रश्न. 8.
अपनी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पदों के आधार पर बताइए कि मीरा का सामान्य जन और भक्तजन को क्या संदेश है ?
उत्तर:
मीरा ने काव्य-रचना किसी को कोई संदेश या उपदेश देने के लिए नहीं की है, फिर भी संकलित पदों से, उनमें निहित संदेश ध्वनित हो रहा है। प्रथम पद में मीरा ने यद्यपि अपने मन को संबोधित किया है, तथापि इस पद द्वारा सभी को भगवान के चरण कमलों में ध्यान लगाने, किसी प्रकार का अहंकार न करने, योग और संन्यास के बजाय भक्ति का सरल मार्ग अपनाने के संदेश प्राप्त हो रहे हैं। दूसरे पद से संदेश मिल रहा है कि प्रभु प्राप्ति के लिए मीरा जैसी विकलता ही आवश्यक है। तीसरे और चौथे पद भी गुरु कृपा पाने तथा अपना सर्वस्व समर्पण के प्रभु के पाने का संदेश दे रहे हैं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न. 1.
भज मन चरण कँवल अविनासी।” पद में मीरा ने ईश्वर की सगुण-साकार रूप में-उपासना का संदेश दिया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
मीरा स्वयं भी स्वरूप और गुणसम्पन्न श्रीकृष्ण की उपासिका हैं। अत: उनका सगुण उपासना को समर्थन देना स्वाभाविक है। पद में ‘चरण-कॅवल’ श्रीकृष्ण के ही चरणों के लिए कहा गया है। निराकार ईश्वर के चरण होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसी प्रकार पद में संन्यास और योग को कठिन उपाय माना है। इनमें चूक होने की सम्भावना रहती है। अतः साधक को मन पर कठोर नियंत्रण रखना पड़ता है। भक्ति साकार ईश्वर की उपासना पद्धति है। इसमें मन को प्रभु से जोड़ने का प्रयास रहता है। इस उपासना में भूल-चूक-क्षमा कर दी जाती हैं। इस प्रकार ईश्वर के साकार स्वरूप श्रीकृष्ण से प्रेम और उनकी भक्ति ही, मीरा के अनुसार सबसे सुगम मार्ग है।

प्रश्न 2.
प्रभु की कृपा पाने के लिए गुरु की कृपा भी आवश्यक है। “मैंने राम रतन धन पायौ” पद के आधार पर इस कथन पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पद में मीरा ने अपने सतगुरु की महिमा का गान किया है। गुरु ने उन पर कृपा करते हुए उन्हें राम नाम रूपी अमूल्य धन प्रदान किया है। इस नाम स्मरण मंत्र के बिना मीरा के अपने प्रभु गिरधर नागर की कृपा कैसे प्राप्त हो सकती थी। गुरु द्वारा मार्ग-दर्शन किए जाने पर ही भक्त भगवान तक पहुँच पाता है। गुरु तो एक मार्गदर्शक है, साधना तो भक्त को ही करनी पड़ती है। मीरा ने भी अपने प्रभु की कृपा पाने के लिए कठोर साधना की। परिवार, समाज, व्यंग्य, आक्षेप आदि कितनी बाधाओं को पार करते हुए मीरा कृष्णमय हो पायी, यह सर्वविदित है। अत: प्रभु कृपा रूपी लक्ष्य को पाने के लिए गुरुकृपा का सहयोग भी परम आवश्यक है।

मीराबाई
कवयित्री परिचय

जीवन परिचय-गिरधर गोपाल की अनन्य आराधिका, कृष्ण-प्रेम की साक्षात् प्रतिमूर्ति मीराबाई का हिन्दी के कृष्ण भक्त कवियों में एक विशिष्ट स्थान है। मीरा के जन्म तथा जीवन के विषय में विद्वान एक मते नहीं हैं। मीरा मेड़ता के राव रत्नसिंह की पुत्री थीं। इनका जन्म 1498 ई. में माना जाता है। राणा साँगा के पुत्र भोजराज से मीरा का विवाह हुआ किन्तु भोजराज के युद्ध में वीरगति पाने पर मीरा असमय ही विधवा हो गईं। मीरा को बचपन से कृष्ण के प्रति अनुराग था। वह श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानती थीं। विधवा होने के पश्चात भगवद् भक्ति में मीरा की रुचि बढ़ती चली गई। मीरा का साधु-संतों की संगति करना राजपरिवार को स्वीकार नहीं था। उनका बहुत विरोध हुआ और अंतत: मीरा घर-परिवार त्याग कर प्रियतम कृष्ण की दीवानी बनी हुई उनके लीलास्थलों में रहीं। अंत में वह द्वारका चली गई और वहीं कृष्ण की मूर्ति से एकाकार हो गई, ऐसा विश्वास है।

काव्य-परिचय-रचनाएँ-मीरा रचित चार ग्रन्थ माने गए हैं-

  1. नरसी जी का मायरो,
  2. गीत गोविन्द की टीका,
  3. राग गोविंद
  4. राग सोरठ।

मीरा ने प्रमुखतः पदों की रचना की। उनके पदों की भाषा राजस्थानी का मिश्रित ब्रजभाषा है। मीरा ने कवित्व प्रदर्शन के लिए पद-रचना नहीं की थी। अपने इष्ट और सर्वस्व कृष्ण के प्रति अपनी भावनाओं को ही उन्होंने कविता के माध्यम से व्यक्त किया है। कृष्ण-मिलन की उनकी आतुरता, विरह जन्य वेदना, संसार की असारता, सहज भक्तिभाव आदि उनकी रचनाओं के विषय हैं।

एक प्रेमाकुल नारी हृदय की भाव-व्यंजना माधुर्य और प्रसाद गुणों के साथ, सीधी-सादी शैली में व्यक्त होकर उनकी कविता बन गई है। इसी कारण उनके पद बड़े लोकप्रिय रहे हैं। मीरा भक्तिभाव और सम्पूर्ण समर्पण का आदर्श है।

पाठ-परिचय संकलित पदों में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अनन्य प्रेम-भावना व्यक्त हुई है। प्रथम पद में वह अविनाशी प्रभु के चरण-कमलों की वंदना करते हुए, सांसारिक जीवन की असारता का उल्लेख कर रही हैं। उनके अनुसार बाहरी वेश-भूषा और अहंकार के द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती। प्रभु को मानने और कृपा पाने पर ही मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है।

दूसरे पद में मीरा की विरह वेदना साकार हुई। वह कृष्ण-मिलन के लिए अत्यन्त व्याकुल है।

तीसरे पद में प्रभुनाम रूपी अमूल्य धन की प्रशंसा की गई है और चौथे पद में मीरा स्पष्ट घोषणा कर रही हैं कि उन्होंने अपने प्रेम रूपी धन से अपने प्रिय श्रीकृष्ण को अपना बनाया है। यह सौदा उन्होंने चुपचाप या छिपकर नहीं, बल्कि ढोल बजाकर, सबको जताकर, किया है। उन्हें विश्वास है कि उनके प्रियतम श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देकर अवश्य कृतार्थ करेंगे।

पदावली
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

1.
भज मन! चरण-कँवल अविनासी।
जेताई दीसै धरणि-गगन विच, तेता (इ) सब उठ जासी॥
इस देही का गरब न करणा, माटी में मिल जासी।
यो संसार चहर की बाजी, साँझ पड्यां उठ जासी॥
कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घरे तज भए सन्यासी।
जोगी होइ जुगति नहिं जांणी, उलटि जनम फिर आसी॥
अरज करूँ अबला कर जोरे, स्याम! तुम्हारी दासी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर! काटो जम की फाँसी॥

कठिन शब्दार्थ-कॅवले = कमल। अविनासी = नष्ट न होने वाला, शाश्वत। जेताई = जितना भी। धरणि = धरती। गगन = आकाश। बिच = बीच में। तेता = उतना। उठ जासी = नष्ट हो जाएगा। देही = शरीर। गरबे = गर्व, अहंकार। जासी = जाएगा। यो = यह। चहर की बाजी = चौसर नामक खेल की बाजी। उठ जासी = उठ जाएगी, खेल समाप्त हो जाएगा। भगवा = साधु-संन्यासियों द्वारा पहने जाने वाले गेरुए वस्त्र। तज = त्यागकर। जुगति = युक्ति, सही उपाय। उलटि = लौटकर, दोबारा। अरज = अर्ज, प्रार्थना। अबला = दुर्बल नारी। जम की फाँसी = यमराज का फन्दा, मृत्यु होना।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत पद पाठ्य पुस्तक अपरा में संकलित मीराबाई की रचना है। इस पद में मीराबाई समस्त संसार को नाशवान बताते हुए भागवान श्रीकृष्ण के अविनाशी चरणों का आश्रय लेने का संदेश दे रही हैं। व्याख्या-मीरा अपने पद के माध्यम से सभी आत्मकल्याण चाहने वाले लोगों को संबोधित कर रही है। वह कहती है कि धरती से आकाश तक जितना भी यह दृश्यमान जगत है, यह सभी एक दिन नष्ट हो जाएगा। केवल श्रीकृष्ण के चरण ही अविनाशी हैं अतः उन्हीं का आश्रय लेना बुद्धिमानी है। इस मनुष्य शरीर की सुंदरता या बल पर गर्व करना मूर्खता है। यह तो एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। यह सारा संसार चौसर खेल की बाजी जैसा है जो शाम होते ही उठ जाती है। संसार का मोह त्यागे बिना भगवा वस्त्र धारण करने या घर को त्यागकर संन्यासी हो जाने से कोई लाभ नहीं होने वाला। योगी तो बन गए लेकिन मुक्ति की युक्ति नहीं जान पाए तो ऐसे योग से क्या लाभ? मीरा अपने प्रभु श्यामसुंदर से प्रार्थना करती हैं कि वह उनकी दासी है। अत: वह उनको यम के फन्दे से-जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त करने की कृपा करें।

विशेष-
(i) मीरा का संदेश है कि मन को नाशवान सांसारिक-विषयों से विमुख करके भगवान के श्रीचरणों में लगाने से ही मनुष्य काल-चक्र से मुक्त हो सकता है। बाहरी वेश-भूषा और उपायों से कुछ लाभ नहीं हो सकता।
(ii) राजस्थानी मिश्रित श्रवण सुखद ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
(iii) यो संसार चहर की बाजी में उपमा अलंकार है।

2. दरस बिनु दुखण लागे नैन।
जब के तुम बिछुरे प्रभु मोरे, कबहुँ न पायो चैन॥
सबद सुनत मेरी छतियाँ कांपै, मीठे-मीठे बैन।
बिरह बिथा का कहूँ सजनी, बह गई करवत अन॥
कल न परत पल, हरि मग जोवत, भई छमासी रैण।
मीरा के प्रभु कबरे मिलौगे, दुख मेटण सुख दैण॥

कठिन शब्दार्थ-दरस = दर्शन। दूखण = दुखना। सबद = शब्द, आहट। बैन = वचन, शब्द। बिथा = व्यथा, वेदना। बह गई = बीत गई। करबत = करवट। कल = चैन। मग = मार्ग। जोवत = देखते। छमासी = छह मास जितनी बड़ी बहुत लम्बी। रैण = रात। मेटण = मिटाने को। दैण = देने को।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत पद भक्तशिरोमणि मीराबाई की रचना है। मीरा अपने प्रभु श्रीकृष्ण को अपनी विरह-व्यथा और निरंतर प्रतीक्षा में बीत रहीं घड़ियों का हाल निवेदित कर रही हैं।

व्याख्या-मीरा अपने परमप्रिय श्रीकृष्ण से कह रही है कि उनके दर्शन के बिना उनके प्रतीक्षा करने वाले नेत्र अब दुखने लगे हैं। मीरा कहती हैं-हे प्रभु! जब से आप बिछुड़े हो, मेरे मन को कभी चैन नहीं मिल पाया। तनिक-सी आहट होते ही मेरा हृदये काँपने लगता है कि कहीं आप तो नहीं आए। मुझे लगता है कि अभी आप मधुर स्वर में मुझे पुकारोगे। मीरा कहती है-हे सखि! मैं अपनी विरह-वेदना किसे सुनाऊँ। मेरी रातें तो करवट लेते बीत जाती हैं। मुझे एक पल को भी चैन नहीं मिलता। प्रियतम श्रीकृष्ण के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए मुझे एक रात छह मास जितनी लम्बी प्रतीत होती है। मीरा कहती है-हे मेरे प्रभु! आप मुझे कब दर्शन दोगे। आपके दर्शन और मिलन से ही मेरे दुख दूर होंगे और मेरा मन सुखी हो पाएगा।

विशेष-
(1) पद में एक वियोगिनी के हृदय की विकलता मर्मस्पर्शी वाणी में मुखर हो रही है।
(2) सरल, किन्तु हृदय में उतर जाने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है।
(3) राजस्थानी और ब्रजभाषा का सहज मिश्रण है।
(4) कथा का कहूँ’ में अनुप्रास अलंकार है।

मैंने राम रतन धन पायो।
बसत अमोलक दी मेरे सतगुर, करि किरपा अपणायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायो।
खरचै नहिं चोर न लेवें, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाव खेवटिया सतगुर, भवसागर तरि आयो।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर हरखि-हरखि जस गायो॥

कठिन शब्दार्थ-राम रतन धन = राम नाम या प्रभु नाम रूपी अमूल्य रत्न। बसत = वस्तु। अमोलक = अत्यन्त मूल्यवान। किरपा = कृपा। खरचै नहिं = घटती नहीं। सवायो = सवा गुना एक और चौथाई के बराबर। सत = सत्य। खेवटिया = केवट, मल्लाह। भवसागर = संसार या जीवनरूपी समुद्र। तरि आयो = पार कर लिया। हरखि = प्रसन्न होकर। जस = यश।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत पद मीराबाई की रचना है। इस पद में मीराबाई अपने सद्गुरु की कृपा का वर्णन कर रही हैं। सद्गुरु ने उन्हें राम नाम रूपी अमूल्य रत्न प्रदान किया है और उन्हें भवसागर से पार किया है।

व्याख्या-मीरा कहती है कि उन्हें गुरु कृपा से राम नाम रूपी अमूल्य धन प्राप्त हुआ है। उनके सद्गुरु ने कृपा करके उन्हें यह अद्भुत धन प्रदान किया है और अपने चरणों में स्थान दिया है। जन्म-जन्मातर के पुण्यों के फल से उन्हें यह मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है। किन्तु अज्ञानवश यह संसार के सुखों में नष्ट हो रहा था। किन्तु गुरु ने मुझे राम रतनधन देकर निहाल कर दिया। मुझे जीवन का सही लक्ष्य-प्रभु के नाम का स्मरण-बताया। यह ऐसा धन है जो खर्च करने पर भी घटता नहीं है अपितु यह दिन-प्रतिदिन संवाया बढ़ता हुआ) होता जाता है। इसे कोई चोर भी चुरा नहीं सकता। मीरा कहती है कि उन्होंने सत्य रूपी नौका और सद्गुरु रूपी केवट के द्वारा भवसागर पार कर लिया है। अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लिया है। यह सब उनके प्रभु गिरधर नाम की कृपा से ही सम्भव हुआ है। अत: वह आनंदमग्न होकर प्रभु के यश का गान कर रही हैं।

विशेष-
(i) सांसारिक धन क्षीण होते जाने वाले हैं। इनकी चोरी का भय रहता है। केवल प्रभु का नाम-स्मरण ही वह अमूल्य और अद्भुत धन है जो निरंतर बढ़ता ही रहता है और भक्त को भवसागर के पार ले जाता है।
(ii) ‘राम रतन धन’, ‘करि किरपा’ में अनुप्रास, ‘जनम-जनम’, ‘दिन-दिन’, ‘हरखि-हरखि’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा ‘सत की नाव खेवटिया सतगुरु’ में रूपक अलंकार है।
(iii) ‘प्रभु नाम स्मरण’ और ‘गुरु-कृपा’ का महत्व दर्शाया गया है।

माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल।
कोई कहै छानै, कोई कहे चौड़े, लियो री बजंता ढोल॥
कोई कई मुँहघो, कोई कहै, मुँहघो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री आँखी खोल॥
याही हूँ सब जग जाणत है, लियो री अमोलक मोल॥
मीरा कुँ प्रभु दरसण दीज्यो, पूरब जनम को कोल॥

कठिन शब्दार्थ-गोविन्दो = श्रीकृष्ण। छानै = छिपकर। चौड़े = सामने। बजंता ढोल = ढोल बजाकर, सबको जताकर। मुहघौ = महँगा॥ मुँहघो = सस्ता। तराजू तोल = विवेक सहित, आँख बंद करके नहीं। पूरब = पूर्व, पिछला। कोल = वचन देना।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत पद श्रीकृष्ण को समर्पित मीराबाई की रचना है। इस पद में मीरा लोकमत की चिन्ता न करते हुए श्रीकृष्ण से अपने पवित्र अनुराग की घोषणा कर रही हैं। वह कह रही हैं कि उन्होंने श्रीकृष्ण का वरण अपनी अन्तरात्मा की प्रेरणा से किया हैं। लोग क्या कहते हैं इसकी उन्हें चिन्ता नहीं।

व्याख्या-मीरा कहती हैं कि उन्होंने अपने गोविन्द को मोल ले लिया है। कोई कहता है कि मैंने छिपकर अपने प्रिय को अपनाया है, कोई कहता है कि खुले में स्वीकार किया है। परन्तु मैंने तो ढोल बजाकर सबको जताकर यह सौदा किया है। चाहे कोई इसे महँगा सौदा बताए चाहे सस्ता बताए। मैंने तो तराजू पर तोल कर, अपने गोविन्द को अपनाया है। मुझे अपने निर्णय पर पूरा भरोसा है। मेरा प्रिय चाहे काला हो चाहे गोरा वह जैसा भी है, उसे मैंने आँखें खोलकर खूब सोच-विचार कर अपनाया है। सारा जगत इस बात को जानता है कि मैंने गोविन्द को पाने के लिए अमूल्य धन-अपना पवित्र अनुरागी हृदय समर्पित करके चुकाया है। मीरा कहती हैं-हे मेरे प्रभु! आप मुझे दर्शन देकर और अपनाकर कृतार्थ कीजिए क्योंकि आपने पूर्व जन्म में मुझे स्वीकार करने का वचन दे रखा है।

विशेष-
(i) गोविन्द को मोल लेना सब के वश की बात नहीं। मीरा जैसी समर्पिता और शरणागती ही उसका मोल चुका सकती है, संसारिक ठाट-बाट, विराट मंदिर, उत्सवों की धूमधाम उस सर्वान्तरयामी को नहीं रिझा सकती। यही संदेश इस पद में निहित है।
(ii) ‘बजंता ढोल’, ‘तराजू तोल’, आँखी खोल मुहावरों ने कथन को प्रभावशाली बना दिया है।
(iii) ‘पूरब जनम को कोल’ का रहस्य वैसे तो मीरा ही जानती होंगी किन्तु कुछ भावुक भक्तों ने पूर्व जन्म में मीरा को ललिता सखी माना है, जिसे कृष्ण ने प्रेमभाव दान दिया था। कोई कहै’, ‘तराजू तोल’ तथा ‘जग जाणत’ में अनुप्रास अलंकार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *