Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit व्याकरण सन्धि-प्रकरणम्
Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit व्याकरण सन्धि-प्रकरणम्
सन्धि का अर्थ-सामान्यतः ‘सन्धि’ शब्द का अर्थ मेल, समझौता या जोड़ है , किन्तु सन्धि प्रकरण में इसका अर्थ थोड़ा भिन्न होते हुए यह है कि जब एक से अधिक स्वर अथवा व्यञ्जन वर्ण अत्यधिक निकट होने के कारण, मिलकर एक रूप धारण करते हैं, तो वह सन्धि का ही परिणाम होता है और यही सन्धि करना कहलाता है। सन्धियुक्त पद में दो या दो से अधिक शब्दों को अलग-अलग करके रखना सन्धि-विच्छेद करना कहलाता है। जैसे-‘हिम + आलयः में हिम के ‘म’ में ‘अ’ के सामने आलयः का ‘आ’ मौजूद है। यहाँ दोनों ओर ‘अ’ + ‘आ’ स्वर हैं। इन दोनों स्वर वर्णो को मिलाकर एक दीर्घ ‘आ’ हो गया है, जिससे ‘हिम + आलयः’ को मिलाकर ‘हिमालयः’ एक सन्धियुक्त पद बन गया है। ‘हिमालयः’ का सन्धि-विच्छेद करने पर ‘हिम + आलयः’ ये दो पद अलग-अलग होंगे। यह स्वर सन्धि के अन्तर्गत ‘दीर्घ’ भेद का उदाहरण है।
सन्धि के भेद- सामान्य रूप से सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं और ये ही इनके भेद कहे जाते हैं। (1) स्वर या अच् सन्धि, (2) व्यञ्जन या हल् सन्धि, (3) विसर्ग सन्धि।
स्वर या अच् सन्धि
परिभाषा-एक स्वर के साथ दूसरे स्वर का मेल होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर या अच् सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के निम्नलिखित पाँच मुख्य उपभेद हैं
- दीर्घ,
- गुण,
- अयादि,
- वृद्धि,
- यण।
1. दीर्घ सन्धि-(अकः सवर्णे दीर्घः) जब ह्रस्व (छोटे) या दीर्घ (बड़े) ‘अ’, ‘इ’,’उ’, ‘ऋ’ स्वर के पश्चात् (आगे) ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’, स्वर आयें तो दोनों सवर्ण (एक जैसे) स्वरों को मिलाकर एक दीर्घ वर्ण ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ हो जाता है। जैसे-
2. गुण सन्धि- (आद् गुण:)-
- अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई आये तो दोनों के स्थान में ‘ए’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद उ अथवा ऊ आये तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद ऋ आये तो ‘अर्’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद लू आये तो अल्’ हो जाता है।
जैसे- देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः। यहाँ पर देव के ‘व’ में अ’ है, उसके बाद इन्द्रः की ‘इ’ है, इसलिए ऊपर के नियम के अनुसार दोनों (देव के ‘अ’ और इन्द्र की ‘इ’) के स्थान में ‘ए’ हो गया। इसी प्रकार-
3. अयादि सन्धि–(एचोऽयवायावः)–ए, ऐ, ओ, औ के बाद जब कोई असमान स्वर आता है, तब ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’, ‘ओ’ के स्थान पर ‘अव’, ‘ऐ’ के स्थान पर ‘आय्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ हो जाता है। जैसे-
नोट-यदि ओ अथवा और के बाद यकारादि वर्ण माला प्रत्यय हो तो ओ का अव् तथा औ का आव् होता है। जैसे-
4. वृद्धि सन्धि-(वृद्धिरेचि)-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ और यदि ‘ओ’ या ‘औ’ आवे तो दोनों के स्थान में ‘औ’ वृद्धि हो जाती है। जैसे-
5. यण् सन्धि–(इको यणचि)-‘इ’ अथवा ‘ई’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘इ’, ‘ई’ का ‘यू’। ‘उ’ तथा ‘ऊ’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘उ’ या ‘ऊ’ का ‘व्’। ‘ऋ’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘ऋ’ को ‘र’ और ‘लू’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘लू’ के स्थान में ‘लु’ हो जाता है। जैसे-
पाठ्यपुस्तक ‘सरसा’ से कुछ संधियों के उदाहरण
अभ्यास
प्रश्नः अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूल शब्दस्य विच्छेदं कृत्वा लिखत
अभ्यास: 1
- रामः विद्यालयं गच्छति।
- नराणां कश्चित् क्लेशः नास्ति।
- शीतांशुः सन्तापं नश्यति।
- किम् रमापि न आगता ?
- अहं प्रात:काले स्नानादि कर्माणि करोमि।
- गंगा-तटे ब्रजेशः धावति।
- राहुलः भ्रमणाय महोद्यानं गच्छति।
- मोहन: कदापि न गमिष्यति।
- सुरेशः आपणं गच्छति।
- सूर्योदयः कदा भवति?
उत्तर:
- विद्या + आलयम्
- न + अस्ति
- शीत + अंशुः
- रमा + अपि
- स्नान + आदि
- ब्रज + ईशः
- मही + उद्यानम्
- कदा + अपि
- सुर + ईशः
- सूर्य + उदयः।
अभ्यास: 2
- सुरेन्द्रः स्वर्गस्य देवता अस्ति।
- तत्र उद्याने वृक्षस्फलति।
- गणेशः शंकरस्य पुत्रः अस्ति।
- शंकरस्य नाम महेशः अपि अस्ति।
- मित्रं सुखं शयितोऽस्मि।
- रामोऽत्र स्थित्वा पठति।
- पूर्णिमायाः दिवसे पूर्णश्चन्द्रः भवति।
- भो परमेश्वर! त्वं कुत्र असि?
- पर्वतेषु हिमालय : श्रेष्ठः अस्ति।
- रामः श्यामः मोहनः इत्यादयः तत्र आसन्।
उत्तर:
- सुर + इन्द्रः,
- वृक्षः + फलति,
- गण + ईशः,
- महा + ईशः,
- शयित: + अस्मि,
- रामः + अत्र,
- पूर्णः + चन्द्रः,
- परम + ईश्वर
- हिम + आलयः,
- इति + आदयः।
अभ्यास: 3
अधोलिखितेषु विच्छेदपदस्य सन्धिं कृत्वा लिखत
- वधू + उपदेशः
- महती + इच्छा
- देव + ऋषिः
- विद्या + आलये
- गुरु + उपदेशः
- रजनी + ईशः
- दया + आनन्दः
- यदा + अहं
- परम + उदारः
- पुरुष + उत्तमः।
उत्तर:
- वधूपदेशः,
- महतीच्छा,
- देवर्षि:,
- विद्यालये,
- गुरूपदेशः,
- रजनीशः,
- दयानन्दः,
- यदाहम्,
- परमोदारः,
- पुरुषोत्तमः।
अभ्यास: 4
- महा + ईश्वरः
- नर + उत्तमः
- सुधा + आकरः
- रत्न + आकरः
- को + अपि
- उप + इन्द्रः
- महा + ईशः
- सप्त + ऋषिः
- राजा + ऋषिः
- वर्षा + ऋतुः।
उत्तर:
- महेश्वरः,
- नरोत्तमः,
- सुधाकरः
- रत्नाकरः,
- कोऽपि,
- उपेन्द्रः,
- महेशः,
- सप्तर्षिः,
- राजर्षिः,
- वर्षर्तुः।
प्रश्नः अधोलिखिते अनुच्छेदे स्थूलपदानां सन्धि-विच्छेदं कृत्वा लिखतएकस्मिन् वने एकः काको वसति स्म। एकदा सः पिपासयाकुलः आसीत्। सः जलाशयम् अन्वेष्टुम् इतस्ततः अगच्छत् किन्तु सुदूरं यावत् कुत्रापि कमपि जलाशयं नापश्यत्। तदैव सः एकं घटम् अलभत। तस्मिन् घटे स्वल्पं जलम् आसीत्। अतः सः जलं पातुम् असमर्थोऽभवत्। सः एकोपायम् अचिन्तयत्। सः दूरात् पाषाणखण्डान्यानीय घटे अक्षिपत्। एवं क्रमेण जलम् उपर्यागतं जलं च पीत्वा सः सुखी अभवत्। उद्यमेन काकः स्वप्रयोजने सफलोऽभवत्।
उत्तर:
- काकः + वसति
- पिपासया + आकुलः
- जल + आशयम्
- कुत्र + अपि
- न + अपश्यत्
- तदा + एव
- सु + अल्पम्
- असमर्थः + अभवत्
- एक + उपायम्
- पाषाणखण्डानि + आनीय
- उपरि + आगतम्
- सफलः + अभवत्।